Saturday, October 16, 2010

जिंदगी

कुछ लोग किसी को तभी याद करते है जब उनके घर में आग लगती है पर वो भूल जाते है की कभी उन्होंने भी किसी के घर में आग लगायी थी . और वो आग आज भी किसी के दिल में जल रही है तो क्यों उसको याद करके उस आग को भड़काते है वोह लोग ?
जिंदगी से बढ़ कर कुछ भी उलझा हुआ नहीं होता ..सुलझाने की कोशिश करो अगर ऐसा कर पो तो वर्ना जिंदगी को ऐसे बहने दो जैसे नदी में पानी बहता है . पर एक बात याद रखना दोस्त ..पानी की धारा के साथ मुर्दे बहा करते है ..

औरतो की आजादी

किसी शायर ने कभी ये सोचा नहीं होगा की वो मुस्लिम औरतो के बारे में बारे लिख रहा है या फिर हिन्दू औरतो के बारे में लिख रहा है ..जब उसने ये गीत लिखा "औरत ने जनम दिया मर्दों को , मर्दों ने उसे बाज़ार दिया जब जी चाहा मसला कुचला , जब जी चाहा दुत्कार दिया औरत ने जनम दिया मर्दों को " शायर का नाम था साहिर लुधियानवी और फिल्म का नाम था साधना .
साहिर एक मुस्लिम थे पर एक शायर थे और शायर , लेखक किसी एक समाज का नहीं होता.
उनकी ये गीत हर उस औरत को कहानी को बयां करती है ..जो आज हमारे इस समाज में है चाहे वो किसी ऊचे जगह पर हो या या फिर किसी गन्दी बस्ती में रहने वाली झोपड़े में . ऊचे रसूख वाली औरतो की कहानी कभी कभी ही मीडिया में आ पाती है एक लिमिट के साथ पर निचे रसूख वाली औरतो की कहानी को मीडिया वाले मसाला लगा कर सबके सामने परोस देते है .
रही आज़ादी की बात तो ये बात सही है की ८वि शताब्दी तक हमारे हिन्दू समाज में औरतो की आजादी का बहुत ख्याल रखा गया था .. यहाँ तक की वेश्या भी समाज में एक उच्च कोटि का दर्जा पाती थी ..पर जब से मुस्लिम प्रादुर्भाव हुआ तब से उनके प्रति समाज और घर में काफी बदलाव आये .. प्रदा प्रथा और औरतो को घर में रखने और बहार न निकलने का प्रचलन शुरू हुआ ..
आज भी आज़ादी मिलने के बाद हमारे देश में आधे से जायदा आबादी में उनकी स्थिति अछि नहीं है क्यों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा पढ़ा - लिखा नहीं है और लड़कियों को एक बोझ ही समझा जाता है और लडको को कमाऊं. जो बहुत पढ़े लिखे है उन में भी औरतो के प्रति मानसिकता में झुकाव है .. वह लड़कियां और औरते बंद रूम में प्यार / शादी में होने वाली जय्दाती को सहती है .
रही जाती गत वयस्था की बात तो हमारे राजपुताना में पहले जितनी आजादी थी अब वो उतनी नहीं रही है ..हम आज भी अगर पढ़े लिखे है तो लड़कियों को पढ़ा तो देते है पर एक बंदिश उन पर हमेशा रहती है ..जो की लड़की होने के कारण रहता है.
यहाँ तक की अमेरिका जैसे शहरों में भी औरते भले ही आजाद है पर आज भी करियर प्लेस पर अपने उपर होने वाले व्यवहार को लेकर सजग रहती है . कमोबेश कुछ येही हालत हमारे इंडिया के ऑफिस में मिलता है ..
जो नौकरी शुदा या करियर से जुडी औरते है उनका 24*7 वाली नौकरी का हाल हो जाता है ..जहा उन्हें घर भी देखना पड़ता है ..नौकरी भी ..बच्चे भी और अपने पति के साथ बिस्तर भी . हालत बदत्तर और हो जाते है जब पति की सोच नकारात्मक और संकुचित हो और बाद से बदद्तर और भी जब शादी-शुदा जिंदगी में भी उन्हें पति द्वारा बलात्कार किया जाता है .. और ये खबर किसी मीडिया में नहीं आती .
रही मर्दों द्वारा उन्हें आज़ादी देने के की बात .. तो शुरुवात हर किसी को अपने घर से करनी होगी जहा औरते अपने शुरुवात करती है .. उन्हें औरतो के साथ अगर बाहर सहभागी बनना है तो पहले घर में सहभागी बने ..
औरतो को अपनी गुलाम समझने वाले मर्द ये सोच ले की "अगर औरत अपने मक़ाम से उठे तो दुर्गा देवी भी बन सकती है और गिरे तो आपके जिंदगी में वो जहर भी घोल दे " चुनाव आपका है की आप क्या चाहते है ..उन्हें आज़ादी देकर उन्हें अपना एक मुकाम दिलाना या फिर वोही औरत एक दिन घुट-घुट कर अपनी जान के साथ - साथ आपकी भी जान ले ले !!
माँ दुर्गा की आज पूजा ख़तम हुई ,, जो लोग माँ दुर्गा की पूजा करते है वो सबसे पहले समझ ले की उनका एक रूप लड़की का भी है .. अगर उनकी पूजा कर सकते हो तो अपने घर में रहने वाली दुर्गा-लक्ष्मी को सामान अधिकार देने में आप क्यों संकोच करते है

Friday, May 7, 2010

कुछ भी बुरा नहीं लगता

कुछ भी बुरा नहीं लगता जब कोई अपनी बात कह रहा हो aur यह सिर्फ बातें नहीं जिंदगी की वोह सचाई है जिसको लोग देख कर भी अनजान बनते है या फिर सामना नहीं करना चाहते ..दुनिया में हर किसी के साथ ऐसा होता है पर कुछ लोग ही बात करने की हिम्मत कर पाते है .
रही जिंदगी की खुशियों की बात तो आज खुशियाँ मिलती नहीं .. खोजनी पड़ती है ,,.छीननी पड़ती है हर लम्हे से ..वक़्त जो खुशियाँ नहीं देता हमें आगे बढ़ कर वक़्त के हाथो से छिनना पड़ता है ,,वक़्त बहुत बेरहम होता है ..इंसान बस दिल में एक आशा लगाये बैठा रहता है की कल आने वाला दिन हमारे लिए खुशियाँ लाएगा पर ऐसा नहीं होता और कल आता है और बीत जाता है पर हिम्मत उस इंसान की देखो जिसने कल के लिए नहीं जीया ..उसने रास्ता निकला खुद अपनी खुशियों का ...चाहे वोह रास्ता किसी भी माध्यम से निकले ..
रही बात दोस्तों की ..की तो आज के तारिख में एक कटु सत्य यह है की आज कल बिना self intrest की कोई दोस्ती नहीं है . खास कर प्रोफेसनल लाइफ में और भी जायदा ...हम जैसे जैसे बड़े होते है दोस्ती के मायेने बदल जाते है और दोस्ती निभाने का जरिया भी .. ऐसा भी होता है की जिस पर सबसे जायदा भरोसा करो वोही पीठ में छुरा मार कर चला जाये और एक अनजान रही कंधे पर हाथ रख कर यह पूछ दे की "बात क्या है ? क्यों आखों में नमी है ?" और दोस्त किस लिए होते है ..सुख-दुःख , हसी-ख़ुशी बाटने के लिए ..चलो कोई दोस्त नहीं पर यह बाटने के और भी तरीके है और इंसान अकेले भी इनको बाँट सकता है अपने अकेलेपन में अपने साथ ... पर जिसने भी साथ दिया हो उस पल ..वोह दोस्त है .हाँ दोस्त वोही जो आपके साथ धुल में खेला हो ,,आपके साथ उत्सव में साथ रहा हो और आपके साथ रण-भूमि , करम-भूमि और शमशान भूमि में ...और जो नहीं रहे ..वोह दोस्त नहीं .
रही जनम दिन की ..तो मैं अपना अनुभव बताता हु ..मैं यह सोचता हु की अगर मैं इस दिन आया इस दुनिया में तो अपने लिए नहीं ..दुसरो के लिए ..जिनको ख़ुशी से मिलना हो तो मिल लेता हु ..नहीं मिलना हो तो music , vodka और फ़ोन (उस दिन कही और रहू तो माँ-पापा से बात करने के लिए ) ..म्यूजिक और वोदका मेरे दोस्त होते है उस दिन ...न ही कोई ख़ुशी और न ही इस दुनिया में आने का कोई गम ...बस शांति .

Thursday, April 29, 2010

खुद को ढूँढना

खुद को ढूँढना कभी कभी उतना ही मुश्किल है जैसे पानी को अपने हथेली में बंद करना और कभी कभी उतना ही आसान जैसे पानी में दिखती हुई परछाइयाँ , फर्क सिर्फ इतना है की इंसान दोनों ही हालतों में अपने आप को समझ नहीं पता की उसे कब कहा और क्या चाहिए और कितना ??

Saturday, April 10, 2010

karma

mar kar 2 insaan uper gaye . ek brahman aur ek kasai . dharamraaj ne brahman ko narak de diya aur kasai ko swarg . devtaao ne kaha " dharamraaj aisa kyon ? aap to dharamraaj hai phir aisa anyaay kyon ?"
dharamraaj ne kaha " yeh dono apne apne pichli janam ke anusaar brahman aur kasai mein paida hue. brahman puja bhi karta tha to use swarg ki laalsa thi aur isi lalach mein usne apne sare karam kiye aur yeh kasai ne apne jeevan bhar apne kasai dharam ka palan kiya yeh sochte hue ki jab janam hi is roop mein mila to kya paap aur kya punya. aur usne apne kartavyo ka palan puri nishthapurvak kiya . yehi karan tha ki use swarg mila "

जात न पूछो साधू की 2

फिर मुह को हवा में उठा कर चिल्ला कर मास्टर जी ने आवाज़ लगायी " अरे बुधिया !! सृजन को उसकी कक्षा में ले जा " और फिर चेहरे पर एक संतोष का भाव आया की जो पान की पीक उनके मुह थी वोह मुह में ही रह गयी और वोह धीरे धीरे फिर पान का स्वाद लेने लग गए .
सृजन बुधिया के पीछे_२ चलते हुए कक्षा में पंहुचा तो बुधिया प्रशाशक की भूमिका में आते हुए जोर से कहा " अरे हल्ला मत करो . अभी हिंदी के मास्टर आते है तो चमड़ी खीच देंगे तुम लोगो की "
और फिर नरम आवाज़ में आ कर कहा " बबुआ जी ..वहा आगे बैठ जाओ आप . और कल वोही बैठना "
सृजन धीरे से चलता हुआ एक बच्चे के बगल में बैठ गया और कुछ देर के बाद जब शांत हुआ तो बगल के बच्चे से पूछा .
"क्या नाम है तुम्हारा "
"राम सरन "
तभी उसे अगला सवाल याद आया जो मास्टर जी पूछा था .
"तुम क्या हो ?"
बच्चा सृजन का चेहरा देखने लग गया , उसके पिता ने यह तो बताया ही नहीं की वोह क्या है ?

जात न पूछो साधू की 1

जात न पूछो साधू की

क़स्बा बहुत बड़ा नहीं था इसीलिए कोई प्राइवेट विद्यालय भी नहीं था वह . ले दे के एक माध्यमिक विद्यालय ही था . नामांकन की एक तिथि निर्धारित कर दी गयी थी क्यों की शिक्षा विभाग के महकमे में रिपोर्ट बना कर भेजने की प्रक्रिया भी पूरी करनी होती थी , वर्ना सालो भर बच्चे आते - जाते थे इस विद्यालय में और जो पुरे साल बिता कर अगले कक्षा में चले गए उनके नाम रजिस्टर पर चढ़ जाते थे शिक्षा विभाग के रिपोर्ट में एक गिनती के रूप में .
बमुश्किल से ३ साल के उस बच्चे ने नयी शर्ट , नया हाफ पैंट और बालो में तेल लगा कर उसे लाया गया था ताकि देखने से लगे की बच्चा जिंदगी की शुरुवात अच्छे ढंग से कर सके.
"क्या नाम है?"मास्टर जी ने पूछा
"स......र" बच्चे ने पहले पिता की तरफ देखा और फिर मास्टर साहब से नज़र मिला कर उनके पैरो की तरफ देख कर धीरे से कहा .
"अरे ! जरा जोर से बोलो . मास्टर साहब को भी तो सुनाई पड़े हमारे लाडले का नाम" पिता ने गर्वीली आवाज़ में कहा .
"हाँ हाँ बेटे जरा जोर से बोलो" मास्टर जी ने बच्चे की हिम्मत बढ़ाते हुए बोले.
एक हाथ को पैंट को लपेटते हुए और दुसरे हाथ सर खुजाते हुए बच्चे ने कहा " सृजन कुमार"
"पूरा नाम बताओ मास्टर जी को " मास्टर साहब से पहले उसके पिता बोले तो मास्टर साहब मुस्कुरा उठे ..उन्हें लगा की जो मेहनत उन्हें इस वाक्य को बोलने में होती वोह मेहनत उनकी बच गयी .
"सृजन कुमार सिंह" सृजन से गर्दन सीधी करके जोर से कहा ताकि एक साथ मास्टर जी और उसके पिता दोनों सुन ले .
संशय की स्थिति न रहे इसके लिए भी उन्होंने पूछ ही लिया .
"क्या हो तुम "मास्टर जी बोले.
बच्चे को समझ नहीं आया .वोह अपने पिता को देखने लगा .
"अरे मास्टर जी आपको नहीं पता है क्या ? पुरे कसबे में हमें लोग जानते है और आप ऐसे पूछ रहे है जैसे हम यहाँ के है ही नहीं?" सृजन के पिता ने कहा .
"हे हे हे हे .अरे नहीं नहीं हमने तो बच्चे के मस्तिक को परखने के लिए पूछ दिया था " मास्टर जी ने झेपते हुए कहा .
"कह दो हम राजपूत है " पिता ने फिर गर्व से कहा .
"हम राजपूत है" सृजन ने गर्दन झुका कर सोचते हुए कहा जैसे उसे समझ में नहीं आया की हम तो सृजन है फिर बाबु जी राजपूत क्यों बोल रहे है?
"दाखिला तो हो गया सिंह जी .शाम को आपके बैठक खाने में हम आते है ."मास्टर जी ने कहा .