Saturday, April 10, 2010

जात न पूछो साधू की 1

जात न पूछो साधू की

क़स्बा बहुत बड़ा नहीं था इसीलिए कोई प्राइवेट विद्यालय भी नहीं था वह . ले दे के एक माध्यमिक विद्यालय ही था . नामांकन की एक तिथि निर्धारित कर दी गयी थी क्यों की शिक्षा विभाग के महकमे में रिपोर्ट बना कर भेजने की प्रक्रिया भी पूरी करनी होती थी , वर्ना सालो भर बच्चे आते - जाते थे इस विद्यालय में और जो पुरे साल बिता कर अगले कक्षा में चले गए उनके नाम रजिस्टर पर चढ़ जाते थे शिक्षा विभाग के रिपोर्ट में एक गिनती के रूप में .
बमुश्किल से ३ साल के उस बच्चे ने नयी शर्ट , नया हाफ पैंट और बालो में तेल लगा कर उसे लाया गया था ताकि देखने से लगे की बच्चा जिंदगी की शुरुवात अच्छे ढंग से कर सके.
"क्या नाम है?"मास्टर जी ने पूछा
"स......र" बच्चे ने पहले पिता की तरफ देखा और फिर मास्टर साहब से नज़र मिला कर उनके पैरो की तरफ देख कर धीरे से कहा .
"अरे ! जरा जोर से बोलो . मास्टर साहब को भी तो सुनाई पड़े हमारे लाडले का नाम" पिता ने गर्वीली आवाज़ में कहा .
"हाँ हाँ बेटे जरा जोर से बोलो" मास्टर जी ने बच्चे की हिम्मत बढ़ाते हुए बोले.
एक हाथ को पैंट को लपेटते हुए और दुसरे हाथ सर खुजाते हुए बच्चे ने कहा " सृजन कुमार"
"पूरा नाम बताओ मास्टर जी को " मास्टर साहब से पहले उसके पिता बोले तो मास्टर साहब मुस्कुरा उठे ..उन्हें लगा की जो मेहनत उन्हें इस वाक्य को बोलने में होती वोह मेहनत उनकी बच गयी .
"सृजन कुमार सिंह" सृजन से गर्दन सीधी करके जोर से कहा ताकि एक साथ मास्टर जी और उसके पिता दोनों सुन ले .
संशय की स्थिति न रहे इसके लिए भी उन्होंने पूछ ही लिया .
"क्या हो तुम "मास्टर जी बोले.
बच्चे को समझ नहीं आया .वोह अपने पिता को देखने लगा .
"अरे मास्टर जी आपको नहीं पता है क्या ? पुरे कसबे में हमें लोग जानते है और आप ऐसे पूछ रहे है जैसे हम यहाँ के है ही नहीं?" सृजन के पिता ने कहा .
"हे हे हे हे .अरे नहीं नहीं हमने तो बच्चे के मस्तिक को परखने के लिए पूछ दिया था " मास्टर जी ने झेपते हुए कहा .
"कह दो हम राजपूत है " पिता ने फिर गर्व से कहा .
"हम राजपूत है" सृजन ने गर्दन झुका कर सोचते हुए कहा जैसे उसे समझ में नहीं आया की हम तो सृजन है फिर बाबु जी राजपूत क्यों बोल रहे है?
"दाखिला तो हो गया सिंह जी .शाम को आपके बैठक खाने में हम आते है ."मास्टर जी ने कहा .

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