Thursday, April 29, 2010

खुद को ढूँढना

खुद को ढूँढना कभी कभी उतना ही मुश्किल है जैसे पानी को अपने हथेली में बंद करना और कभी कभी उतना ही आसान जैसे पानी में दिखती हुई परछाइयाँ , फर्क सिर्फ इतना है की इंसान दोनों ही हालतों में अपने आप को समझ नहीं पता की उसे कब कहा और क्या चाहिए और कितना ??

Saturday, April 10, 2010

karma

mar kar 2 insaan uper gaye . ek brahman aur ek kasai . dharamraaj ne brahman ko narak de diya aur kasai ko swarg . devtaao ne kaha " dharamraaj aisa kyon ? aap to dharamraaj hai phir aisa anyaay kyon ?"
dharamraaj ne kaha " yeh dono apne apne pichli janam ke anusaar brahman aur kasai mein paida hue. brahman puja bhi karta tha to use swarg ki laalsa thi aur isi lalach mein usne apne sare karam kiye aur yeh kasai ne apne jeevan bhar apne kasai dharam ka palan kiya yeh sochte hue ki jab janam hi is roop mein mila to kya paap aur kya punya. aur usne apne kartavyo ka palan puri nishthapurvak kiya . yehi karan tha ki use swarg mila "

जात न पूछो साधू की 2

फिर मुह को हवा में उठा कर चिल्ला कर मास्टर जी ने आवाज़ लगायी " अरे बुधिया !! सृजन को उसकी कक्षा में ले जा " और फिर चेहरे पर एक संतोष का भाव आया की जो पान की पीक उनके मुह थी वोह मुह में ही रह गयी और वोह धीरे धीरे फिर पान का स्वाद लेने लग गए .
सृजन बुधिया के पीछे_२ चलते हुए कक्षा में पंहुचा तो बुधिया प्रशाशक की भूमिका में आते हुए जोर से कहा " अरे हल्ला मत करो . अभी हिंदी के मास्टर आते है तो चमड़ी खीच देंगे तुम लोगो की "
और फिर नरम आवाज़ में आ कर कहा " बबुआ जी ..वहा आगे बैठ जाओ आप . और कल वोही बैठना "
सृजन धीरे से चलता हुआ एक बच्चे के बगल में बैठ गया और कुछ देर के बाद जब शांत हुआ तो बगल के बच्चे से पूछा .
"क्या नाम है तुम्हारा "
"राम सरन "
तभी उसे अगला सवाल याद आया जो मास्टर जी पूछा था .
"तुम क्या हो ?"
बच्चा सृजन का चेहरा देखने लग गया , उसके पिता ने यह तो बताया ही नहीं की वोह क्या है ?

जात न पूछो साधू की 1

जात न पूछो साधू की

क़स्बा बहुत बड़ा नहीं था इसीलिए कोई प्राइवेट विद्यालय भी नहीं था वह . ले दे के एक माध्यमिक विद्यालय ही था . नामांकन की एक तिथि निर्धारित कर दी गयी थी क्यों की शिक्षा विभाग के महकमे में रिपोर्ट बना कर भेजने की प्रक्रिया भी पूरी करनी होती थी , वर्ना सालो भर बच्चे आते - जाते थे इस विद्यालय में और जो पुरे साल बिता कर अगले कक्षा में चले गए उनके नाम रजिस्टर पर चढ़ जाते थे शिक्षा विभाग के रिपोर्ट में एक गिनती के रूप में .
बमुश्किल से ३ साल के उस बच्चे ने नयी शर्ट , नया हाफ पैंट और बालो में तेल लगा कर उसे लाया गया था ताकि देखने से लगे की बच्चा जिंदगी की शुरुवात अच्छे ढंग से कर सके.
"क्या नाम है?"मास्टर जी ने पूछा
"स......र" बच्चे ने पहले पिता की तरफ देखा और फिर मास्टर साहब से नज़र मिला कर उनके पैरो की तरफ देख कर धीरे से कहा .
"अरे ! जरा जोर से बोलो . मास्टर साहब को भी तो सुनाई पड़े हमारे लाडले का नाम" पिता ने गर्वीली आवाज़ में कहा .
"हाँ हाँ बेटे जरा जोर से बोलो" मास्टर जी ने बच्चे की हिम्मत बढ़ाते हुए बोले.
एक हाथ को पैंट को लपेटते हुए और दुसरे हाथ सर खुजाते हुए बच्चे ने कहा " सृजन कुमार"
"पूरा नाम बताओ मास्टर जी को " मास्टर साहब से पहले उसके पिता बोले तो मास्टर साहब मुस्कुरा उठे ..उन्हें लगा की जो मेहनत उन्हें इस वाक्य को बोलने में होती वोह मेहनत उनकी बच गयी .
"सृजन कुमार सिंह" सृजन से गर्दन सीधी करके जोर से कहा ताकि एक साथ मास्टर जी और उसके पिता दोनों सुन ले .
संशय की स्थिति न रहे इसके लिए भी उन्होंने पूछ ही लिया .
"क्या हो तुम "मास्टर जी बोले.
बच्चे को समझ नहीं आया .वोह अपने पिता को देखने लगा .
"अरे मास्टर जी आपको नहीं पता है क्या ? पुरे कसबे में हमें लोग जानते है और आप ऐसे पूछ रहे है जैसे हम यहाँ के है ही नहीं?" सृजन के पिता ने कहा .
"हे हे हे हे .अरे नहीं नहीं हमने तो बच्चे के मस्तिक को परखने के लिए पूछ दिया था " मास्टर जी ने झेपते हुए कहा .
"कह दो हम राजपूत है " पिता ने फिर गर्व से कहा .
"हम राजपूत है" सृजन ने गर्दन झुका कर सोचते हुए कहा जैसे उसे समझ में नहीं आया की हम तो सृजन है फिर बाबु जी राजपूत क्यों बोल रहे है?
"दाखिला तो हो गया सिंह जी .शाम को आपके बैठक खाने में हम आते है ."मास्टर जी ने कहा .